
परिचय Drinking Water
हम बचपन से सुनते आए हैं कि “खड़े होकर पानी मत पियो, इससे किडनी खराब होगी, घुटने कमजोर होंगे, दिल पर असर होगा।” लेकिन क्या सच में ऐसा है? क्या विज्ञान ने इसे प्रमाणित किया है ? और फिर अगर खड़े होकर पीना ठीक नहीं होता, तो दुनिया के सबसे फिट लोग यानी खिलाड़ी दौड़ते‑भागते, खड़े होकर ही पानी क्यों पीते हैं?
आइए इस पूरे मामले को विज्ञान, तर्क और वास्तविक उदाहरणों की मदद से समझें और पता लगाएं कि सही आदत क्या है।
आयुर्वेद में सीधे “खड़े होकर पानी पीना मना है” ऐसा कोई स्पष्ट श्लोक नहीं है, लेकिन इसका विचार त्रिकालबद्ध नियमों (दिनचर्या, आहार-नियम) में मिलता है।
आयुर्वेद में कहा गया है कि भोजन और पानी “समाहित चित्त” (शांत मन), “विरम स्थान” (बैठी अवस्था) में ग्रहण करना चाहिए, ताकि जठराग्नि (पाचन शक्ति) सही तरह से काम करे।
एक आयुर्वेदिक संदर्भ जो अक्सर लिया जाता है:
“उदकं भोजनानन्तरं पिबेत्, न तु भोजनमुदकानन्तरम्“
(भावार्थ: भोजन के तुरंत बाद थोड़ा पानी लिया जा सकता है, पर खाने से पहले अधिक पानी नहीं लेना चाहिए।)
इसमें खड़े होकर मत पियो जैसी बात का शाब्दिक उल्लेख नहीं है, यह धारणा व्यवहार और संयमित दिनचर्या के विस्तारित सिद्धांतों से निकलकर आई है।
यह मान्यता शास्त्रों की मूल भावना शांति, स्थिरता और जागरूकता से भोजन-पानी लेना से प्रेरित है, लेकिन इसका आधुनिक शारीरिक नुकसान वाला दावा वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं है।
कहाँ से आई यह धारणा?
- घर‑घर बताई गई पुरानी सलाह: “बैठकर पानी पीओ, खड़े होकर मत पियो।” यह हमें अक्सर बुजुर्गों और माँ‑बाप से मिली है |
- आयुर्वेदिक संदर्भ: आयुर्वेद में कहा गया है कि भोजन‑पानी लेते समय “समाहित चित्त” (शांत मन), “विरम स्थान” (बैठी अवस्था) में होना चाहिए ताकि पाचन शक्ति (जठराग्नि) बेहतर काम करे।
- धीरे‑धीरे, शांति से की जाने वाली सलाह: खाने‑पीने के तुरंत बाद या बीच‑बीच में बहुत तेज़ी से पानी पीना अच्छा नहीं माना गया।
- इन सबका बड़ा उद्देश्य था मन शांत हो, भोजन‑पानी सावधानी से लिया जाए। लेकिन समय के साथ यह सुझाव शाब्दिक नियम बन गया खड़े होकर मत पियो और आखिरकार एक मिथक जैसा बन गया।
विज्ञान क्या कहता है?
Absorption (अवशोषण)
जैव‑विज्ञान के अनुसार, पानी पीने के बाद वह पेट में जाता है और आंतों द्वारा अवशोषित किया जाता है। चाहे आप खड़े हों या बैठे यह प्रक्रिया लगभग समान चलती है । शरीर की स्थिति का इस बात पर प्रमाणित प्रभाव नहीं दिखा है कि आपके खड़े या बैठकर पानी पीने से अवशोषण की प्रक्रिया मे कोई बदलाव आता है ।
सच्चाई: शरीर की जल-शोषण (water absorption) क्षमता पर पानी की मात्रा, समय, और पानी पीने की गति का असर पड़ता है न की शरीर की स्थिति का ।
- Journal of Neurogastroenterology and Motility – 2014 Study
इस अध्ययन में पाया गया कि पानी पीने के तरीके (standing / sitting) से पाचन तंत्र की कार्यक्षमता में कोई खास अंतर नहीं आता। मुख्य फर्क सिर्फ पानी पीने की गति से पड़ता है।
- National Library of Medicine (NIH) – Hydration Physiology Reports
NIH के hydration research papers में दर्शाया गया है कि चाहे आप खड़े हों या बैठे हो शरीर पानी को उसी तरह अवशोषित करता है ।
- International Journal of Sports Medicine – Athletes’ Hydration Study
इस स्टडी में marathon runners और खिलाड़ियों की पानी पीने की आदते देखी गईं। उन्होने पाया की खिलाड़ी लगातार खड़े होकर, दौड़ते हुए, चलते हुए पानी पीते है परंतु उनमे किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या उनके विभिन्न अवस्था मे पानी पीने से जुड़ी नहीं मिली।
- Harvard Health Publishing – Hydration Guidance
Harvard के hydration guidelines में कहा गया है कि पानी पीने मे उसका समय, पर्यावरण, शारीरिक क्रिया सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसमे खड़े या बैठकर पानी पीना हेल्थ रिस्क फैक्टर नहीं माना गया।
और भी मेडिकल लेखों में पाया गया है कि बहुत तेज़ी से या एक‑बार में बहुत मात्रा में पानी पीने से हिचकी, पेट फुलना, एसिडिटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं लेकिन यह पोज़िशन से नहीं, बल्कि पीने की गति और मात्रा से जुड़ी है।
वैज्ञानिक रूप से खड़े होकर पानी पीने से किडनी, घुटनों या दिल पर असर होने का कोई प्रमाण नहीं है । Drinking Water
किडनी खराब हो जाती है – यह दावा गलत है
- सच्चाई: किडनी शरीर से टॉक्सिन और एक्स्ट्रा पानी को फिल्टर करती है, और ये प्रक्रिया इस बात से प्रभावित नहीं होती कि पानी खड़े होकर पिया गया या बैठकर।
- कोई वैज्ञानिक स्टडी या क्लिनिकल डेटा नहीं जो यह साबित करे कि खड़े होकर पानी पीने से किडनी पर नेगेटिव असर होता है।
घुटने कमजोर होते है – कोई मेडिकल आधार नहीं
- यह कथन आयुर्वेद या पारंपरिक धारणाओं से जुड़ा है, लेकिन आधुनिक मेडिकल साइंस में इसका कोई ठोस आधार नहीं है।
- घुटनों की सेहत जोड़ों (joints), पोषण, उम्र, और गतिविधि पर निर्भर करती है, पानी पीने की पोज़िशन पर नहीं।
दिल पर असर पड़ता है – मिथक है
- खड़े होकर पानी पीने से दिल पर दबाव पड़ता है, ऐसा कोई मेडिकल प्रमाण नहीं।
- दिल पर असर तभी आता है जब ब्लड प्रेशर या फ्लूड बैलेंस असामान्य हो और इसका पानी की पोज़िशन से कोई सीधा संबंध नहीं।
असली ध्यान देने वाली बातें:
- क्या आप ज़रूरत से ज़्यादा पानी तो नहीं पी रहे?
- आप बहुत तेज़ी से पानी तो नहीं पीते?
- क्या शरीर की प्यास को अनदेखा कर सिर्फ “नियम” मानकर पानी पीते हैं?
ये बातें आपके स्वास्थ्य पर असर डाल सकती हैं लेकिन केवल खड़े होकर पानी पीना किसी गंभीर रोग की वजह नहीं बनत
निष्कर्ष:
कोई भी आधुनिक शोध यह नहीं कहता कि खड़े होकर पानी पीने से:
- किडनी को नुकसान
- घुटनों में कमजोरी
- या हृदय पर नकारात्मक असर पड़ता है।
यह एक परंपरागत धारणा है, जो समय और विज्ञान की कसौटी पर सही साबित नहीं होती। महत्वपूर्ण बात यह है कि आप धीरे, आराम से और जरूरत के अनुसार पानी पिएं।
खिलाड़ी और एथलीट इस बात के मजबूत वैज्ञानिक प्रमाण है कि खड़े होकर पानी पीना नुकसानदायक नहीं है।
आइए इसे विस्तार से समझें:
1. खिलाड़ी कब और कैसे पानी पीते हैं?
Marathon runners / Sprinters
एथलीट दौड़ते हुए हर 2–3 किलोमीटर पर पानी पीते है । न वे बैठते है, न रुकते है फिर भी शरीर पानी को ठीक से अवशोषित करता है। अगर खड़े या चलते हुए पानी पीना नुकसानदेह होता, तो ज्यादातर एथलीट के पाचनतंत्र या kidney system सबसे पहले बिगड़ते लेकिन ऐसा नहीं होता।
Football, Cricket, Hockey players
ये खिलाड़ी मैच के बीच में, गर्मी में पसीना बहाते हुए, तेजी से सांस लेते हुए खड़े-खड़े पानी पीते है । कई बार भागते हुए भी तुरंत पानी पीते है इससे उन्हें ताकत मिलती है, कोई नुकसान नही होता ।
Gym-goers & Strength Athletes
intense workout के दौरान शरीर का तापमान बढ़ता है और पानी की ज़रूरत होती है । वो खड़े खड़े या चलते चलते बार-बार पानी पीते है ताकि hydration बना रहे।
निष्कर्ष (Conclusion)
“खड़े होकर पानी नहीं पीना चाहिए” यह बात हमारे घरों में लंबे समय से कही जाती रही है, लेकिन आधुनिक विज्ञान और मेडिकल रिसर्च इससे सहमत नहीं है। आज उपलब्ध अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि खड़े होकर या बैठकर पानी पीने से शरीर को कोई सिद्ध नुकसान नहीं होता।
शरीर पानी को जैविक रूप से एक ही तरीके से अवशोषित करता है, चाहे posture कोई भी हो।वास्तविक अंतर posture नहीं, बल्कि कुछ अन्य आदतों से पड़ता है जैसे कि पानी तेज़ी से पीना, बहुत ठंडा पानी एक साथ पी लेना, या खाना खाते समय अधिक पानी पी लेना।
इन आदतों का पाचन पर प्रभाव दिखता है, लेकिन खड़े होकर पानी पीना अकेले किसी गंभीर समस्या का कारण नहीं बनता।खिलाड़ी, धावक, जिम एथलीट, और दुनिया भर के स्पोर्ट्स प्रोफेशनल्स जो फिटनेस और शरीर विज्ञान की सबसे सटीक जानकारी के साथ काम करते है ।
लगातार खड़े होकर और चलते हुए पानी पीते हैं, और उनके hydration science में कहीं भी यह नहीं कहा गया कि आपका posture कोई खतरा बन सकता है। यह स्वयं इस मिथक को गलत साबित करने के लिए पर्याप्त है।फिर भी, बैठकर पानी पीने की पारंपरिक सलाह को पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
बैठकर पानी पीना शरीर को शांत करता है, गति को धीमा करता है, और mindfulness बढ़ाता है, जिससे gulping कम होती है और digestion आसान महसूस होता है। यानी बैठकर पानी पीना एक बेहतर आदत हो सकती है, लेकिन खड़े होकर पानी पीना नुकसानदायक नहीं है यह समझना ज़रूरी है।
अंत में, सही बात यह है कि स्वास्थ्य posture से नहीं, बल्कि आपकी पानी पीने की आदतों से प्रभावित होता है।
धीरे-धीरे छोटे घूंटों में पानी पीना, पर्याप्त मात्रा में hydration बनाए रखना, और अपने शरीर के संकेतों को समझना ये सभी posture से कहीं अधिक महत्वपूर्ण पहलू हैं।इसलिए, इस मिथक को लेकर भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है।अगर आप आराम से बैठकर पानी पीते हैं बहुत अच्छा।अगर कभी खड़े होकर या चलते-फिरते पानी पीना पड़े यह भी बिल्कुल सुरक्षित है।
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